Introduction to computer
Computer एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जिसे
सूचना के साथ काम करने के लिए बनाया गया है । कंप्यूटर का शब्द लैटिन शब्द "Compute"
से लिया गया है, इसका मतलब है गणना या
प्रोग्राम योग्य मशीन । Computer प्रोग्राम के बिना कुछ भी
नहीं कर सकता । यह बाइनरी अंकों की स्ट्रिंग के माध्यम से दशमलव संख्याओं का
प्रतिनिधित्व करता है ।
कंप्यूटर दो हिस्सों से मिलकर बनता है- पहला हार्डवेयर और
दूसरा सॉफ्टवेयर। एक कंप्यूटर के सभी भौतिक हिस्से हार्डवेयर के भाग है, जिसमे की बोर्ड, माउस,
मोनिटर आदि शामिल है। कंप्यूटर का इस्तमोल होने वाले प्रोग्राम और
भाषाएं सॉफ्टवेयर कहलाती है।
आज कंप्यूटर बहुत महत्वपूर्ण बन गया है, क्योंकि यह शुद्ध और तेज गति से कार्य करता
है, और सभी कार्य तेजी से पूरा कर लेता है, अन्यथा हाथ से इन कार्यों को पूरा करने के लिए बहुत अधिक समय की जरुरत
होती , यह बड़ी गणनाएं सैकड़ से भी कम समय में कर लेता है।
इसके अलावा इसमे बड़ी मात्रा में डेटा (सूचना) को
भंडारित(store) किया
जा सकता है। हमे इंटरनेट का उपयोग करते हुए विभिन्न पक्षों की ढेर सारी जानकारी
मिल जाती है।
2. कंप्यूटर के उपयोग (Use of Computer)
A. बैंक
में कंप्यूटर (Computer in Bank): - लगभग प्रत्येक बैंक में धनराशि के लेनदेन के रिकॉर्ड और वित्तीय दस्तावेजों को
रखने के लिए कंप्यूटरों का उपयोग किया जाता है। इस क्षेत्र में इनका उपयोग गति, सुविधा और सुरक्षा कारणों से भी होता है।
B. संचार
में कंप्यूटर (Computer in Communication): - इंटरनेट या ईमेल के माध्यम से बहुत से संचार आसान और सरल बन
गये है। कंप्यूटर द्वारा संचार के लिए टेलीफोन लाइनों, मॉडेम
और उपग्रहों का उपयोग किया जाता है। ईमेल के जरिये हम दुनिया के किसी भी कोने में
बैठे व्यक्ति तक सैकंड में संदेश पहुचा सकते है।
C. व्यापार
में कंप्यूटर (Computer in Business): - कंप्यूटर आज कर्पोरेट जीवन का अविभाज्य भाग बन गया है। व्यापार
सम्बन्धी लेनदेन बहुत आसानी से शुद्द्तापूर्ण होते है। तथा सभी व्यापारिक लेनदेनों
का रिकॉर्ड रखा जा सकता है। आज कंप्यूटर प्रत्येक स्टोर, सुपरमार्केट, रेस्तरां एवं कार्यालय में देखे जा सकते है। अब चीजो को ऑनलाइन बेचा व
खरीदा जा सकता है। बिलों और करों का भुगतान ऑनलाइन किया जा सकता है ।
D. चिकित्सा
विज्ञान एवं स्वास्थ्य देखभाल में कंप्यूटर (Computer in Medical Science
and Health Care):- कंप्यूटर की सहायता से रोगों का निदान आसानी
से किया जा सकता है। लगभग प्रत्येक चिकित्सा उपकरणों में कंप्यूटर का उपयोग किया
जाता है। स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में भी विभिन्न कार्यों के निष्पादन में
कंप्यूटर का इस्तमोल किया जाता है।
E. शिक्षा
में कंप्यूटर (Computer in education):- आज कंप्यूटर शिक्षा का एक
महत्वपूर्ण भाग बन गया है, क्योंकि शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में हम कंप्यूटर
का इस्तमोल करते है, कंप्यूटर के ज्ञान के बिना हमे नौकरी नही मिल सकती
और हम अच्छा निष्पादन नही कर सकते. अतः कंप्यूटर से नौकरी की संभाव्यता में सुधार आता है. अध्यापकों द्वारा पढ़ाने, छात्रों के रिकॉर्ड
रखने, ऑनलाइन अधिगम और आंकलन के लिए कक्षाकक्षों में कंप्यूटर का प्रयोग किया जाता
है.
3. History of Computer
Computer का इतिहास लगभग 2500 साल पुराना
माना जाता हैं, चीन में एक गणना यंत्र अबेकस का आविष्कार
किया गया था. यह एक यांत्रिक उपकरण हैं. जिसकी आंतरिक फ्रेम के अन्दर कई समांतर
तार लगी हुई हैं. जिसमे पांच या इससे अधिक बीड होती हैं. प्रारम्भ में अबेकस का
उपयोग व्यापारी विभिन्न प्रकार की गणना के लिए उपयोग किया करते थे.
फ्रांस के महान गणितज्ञ ब्लेज पास्कल ने 1642 में पहला
यांत्रिक अंकीय गणना यंत्र विकसित किया था. इस मशीन को एडिंग मशीन भी कहा जाता था.
ब्लेज पास्कल की इस मशीन को पास्कलाइन भी कहा जाता था. और यह पहला मैकेनिकल
कंप्यूटर था.
बैवेज का कंप्यूटर के विकास में बड़ा योगदान रहा हैं.
एनालिटिकल इंजन पहला प्रोग्रामिंग कंप्यूटर था. यह पहला कंप्यूटर था जो निर्देशों
के आधार पर गणना किया करता था. इसी कारण चाल्र्स बैवेज को कंप्यूटर का जनक (father of computer) कहा जाता हैं.
IBM के चार इंजीनियरों सहित आइकेन ने सन 1939
में एक मशीन विकसित की. जिसका नाम AUTOMATIC SEQUENCE CONTROLLED
CALCULATOR रखा गया. बाद में इस मशीन का नाम मार्क 1 रखा गया. यह
पहला विद्युत यांत्रिक कंप्यूटर था. सन 1946 में एकर्ट तथा मैकली नामक वैज्ञानिकों
ने ENIAC(Electronic Numerical Integrator and Computer) नामक कंप्यूटर बनाया. यह विश्व
का पहला सामान्य उद्देश्य के लिए बनाया गया विद्युत कंप्यूटर था.
UNIVACI को 1951 में विकसित किया गया था. यह प्रथम
डिजिटल कंप्यूटर था. इसका उपयोग व्यापारिक कार्यो के लिए होता था. यह ENIAC
का ही विकसित रूप था.
4. Computer Generation
कंप्यूटर के विकास के इतिहास को हम एक समय अंतराल में
विकसित की गई नई तकनीक के आधार पर 5 पीढियों में समझ सकते हैं.
प्रत्येक पीढ़ी के कंप्यूटर के मुलभुत सिद्धांत व उसके किसी
भाग में नई तकनीक के विकसित होने पर एक पीढ़ी की शुरुआत होती हैं. गणना के लिए बने
पहले उपकरण से लेकर आधुनिक कंप्यूटर के आविष्कार तक का वर्णन इस प्रकार हैं.
प्रथम पीढ़ी (1946-1956)
द्वितय पीढ़ी (1956-1965)
तृतीय पीढ़ी ( 1965-1975)
चतुर्थ पीढ़ी (1975-1988)
पंचम पीढ़ी (1988 से आज तक)
First Generation
of Computer (): - प्रथम पीढ़ी के कंप्यूटर का समय सन् 1942 से लेकर 1956 तक रहा. प्रारम्भ के कुछ कंप्यूटर ENIAC,
EDVAC, EDSAC इत्यादि हैं. इस Generation के Computers
में Vacuum Tubes का इस्तेमाल किया
गया था.
Vacuum Tube शीशे के बने यंत्र होते थे.
जिनके द्वारा विद्युतीय संकेतों को नियंत्रित किया जा सकता हैं. ये आकार में बड़े
तथा अधिक उष्मा उत्पन्न करते थे. इस जनरेशन में मशीनी भाषा 0 से 1 के समूहों का
प्रयोग किया जाता था. लेकिन इसकी मेमोरी सिमित थी. ENIAC (Electronic Numerical Integrator and Calculator), EDVAC (Electronic
Discrete Variable Automatic Computer), EDSAC (Electronic Delay Storage
Automatic Calculator)
Advantage: -
Ø इस जनरेशन में Vacuum Tube ही एक मात्र Electronic यंत्र थे.
Ø vacuum Tube तकनीक ने electronic digital computer में मदद की.
Ø यह अपने time के सर्वाधिक तीव्र कंप्यूटर थे. ये गणनाएँ मिली सेकंड में करते
थे.
Disadvantage: -
Ø इस जनरेशन के Computers आकार में बहुत बड़े होते थे. जिसके
कारण उन्हें एक स्थान से दुसरे स्थान नहीं ले जाया जा सकता था.
Ø हजारों vacuum Tube लगे होने के कारण अत्यधिक उष्मा उत्पन्न थी. जिसके
कारण tubes जल्दी जल जाते थे. इनका व्यावसायिक उत्पादन बहुत
महँगा था.
Ø इसकी क्रियाशीलता पूर्णतया विश्वसनीय नहीं थी.
Second Generation
of Computer: - यह जनरेशन 1956 से
लेकर 1965 तक का था. सन् 1947 में Bell Labs में ट्रान्जिस्टर का आविष्कार हुआ और इसकी बनावट में लगातार सुधार हुआ.
जिसके कारण प्रथम जनरेशन में इस्तेमाल होने वाले vacuum Tube की जगह हल्के छोटे ट्रान्जिस्टर व डायोड प्रयोग किए जाने लगे. जिसके कारण second generation के
computers का आकार घटा व इसकी memory कई
गुना बढ़ गयी. इस generation में Cobol, assembly,
Fortran इत्यादि. भाषाएँ उपयोग होती थी. इस जनरेशन के कंप्यूटर में data
को store करने के लिए मैग्नेटिक डिस्क तथा टेप
का उपयोग किया गया. मैग्नेटिक डिस्क पर आयरन ऑक्साइड की परत होती थी.
इस पीढ़ी के मुख्य कम्प्यूटर्स IBM का System-360m DEC (Digital
Equipment Corporation) का Programmable Data Processor-1
(PDP-1), PDP-5, PDP-5, PDP-8, ICL 1900, और UNIVAC 1108 और 9000 थे।
Advantage: -
Ø कंप्यूटर Size में कुछ छोटे और विश्वसनीय हो गए..
Ø कंप्यूटर की Speed अधिक तीव्र हो गयी.
Ø उष्मा का उत्सर्जन कम होने लगा.
Ø इसमें मैग्नेटिक कोर मेमोरी का प्रयोग होता था.
Ø Hardware विफलताओं में कमी आयी.
Ø इनका व्यावसायिक उपयोग होने लगा.
Ø इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता
था.
Disadvantage: -
Ø इनका रखरखाव काफी महँगा था.
Ø वातानुकूलन की आवश्यकता पड़ती थी.
Ø इनका व्यावसायिक उत्पादन कठिन व महँगा था.
Ø प्रत्येक यंत्र का संयोजन मानवीय रूप में किया
जाता था.
Third Generation
of Computer: - Computer के Third Generation का समय 1965-1975 तक का था. इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में सबसे
बड़ी खासियत यह थी की इसमे Main electronic component- Transistor के बदले IC यानि Integrated
Circuit का इस्तमाल किया जाने लगा. इस Integrated
Circuit का आविष्कार जैक किल्बी (Jack Kilby) ने किया था। इस इंट्रीग्रेटेड सर्किट के इस्तेमाल के कारण अब और भी छोटे
आकार का कंप्यूटर बनाना संभव था. जिसमे बिजली की होने वाली खपत और भी कम हो गई थी,
साथ ही इसके प्रोसेसिंग की गति दोनों पीढियों की तुलना में और अधिक
हो गई थी.
इस पीढ़ी के मुख्य कम्प्यूटर्स Programmable Data Processor 1 (PDP-1), PDP-5, PDP-8, ICL
2903, ICL 1900, UNIVAC 1108 थे।
Fourth Generation
of Computer: - computer की Fourth generation की शुरुआत सन् 1975-1988 तक थी. इस पीढ़ी में computer वैज्ञानिको ने IC
Integrated Circuit के बदले VLSI (Very Large Scale
Integrated) को विकसित किया यह VLSI लगभग
300000 ट्रांजिस्टरों के बराबर प्रोसेसिंग करने में सक्षम था. इसे Microprocessor
का नाम दिया गया.
इस Microprocessor की मदद से सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट को एक छोटे
से Chip पर install करना संभव हो गया
था. और इसी माइक्रोप्रोसेसर के इस्तेमाल से बने कंप्यूटर को Micro Computer का नाम दिया गया. माइक्रोप्रोसेसर एक प्रकार का
कंप्यूटर प्रोसेसर है जहां डेटा प्रोसेसिंग लॉजिक और कंट्रोल को एक Integrated
circuit, पर process किया जाता है।
Fourth Generation of Computer में
(GUI) वाली Operating system का use किया गया. जिसकी मदद से Arithmetic and Logical Calculation को बहुत ही आसानी से किया जा सकता था. उस समय सबसे पहला माइक्रो कम्प्यूटर
ALTAIR 8800 बनाया गया, जिसे मिट्स (MITS)
नामक कम्पनी ने बनाया था।
इस पीढ़ी के मुख्य कम्प्यूटर्स Dec 10, Star 1000, PDP 11, CRAY-1, CRAY-X-MP (Super
Computer), PCs थे।
Advantage: -
Ø कंप्यूटर अत्यधिक छोटे आकार (size) के बनने लगे.
Ø कंप्यूटर पिछले पीढ़ी की तुलना में कई गुना fast हो गए.
Ø कंप्यूटर के दाम सस्ते हो गए.
Ø पहले की तुलना में अत्यधिक विश्वसनीय हो गए.
Ø हार्डवेयर की प्रॉब्लम में बहुत कमी आयी.
Ø एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना बहुत ही सरल हो
गया.
Ø आंतरिक Memory की क्षमता में अत्यधिक वृद्धि हो गयी.
Ø फोर्थ जनरेशन लैंग्वेज का प्रयोग होने लगा.
Ø एप्लीकेशन व डिसीजन सपोर्ट सिस्टम का विकास हुआ.
Disadvantage: -
Ø LSI (large-scale integration) Chip बनाने
में अत्यधिक संवेदनशील Technology की आवश्यकता.
Fifth Generation
of Computer: - Fifth Generation के कंप्यूटर का उपयोग बहुत
ही बड़े level पर होने लगा, चौथी पीढ़ी
के कंप्यूटर में कई सीमाए (limitations) और कमियों को दूर
किया गया. सन 1988 के बाद के समय को कंप्यूटर का Fifth
Generation माना गया है. इसमे भविष्य में आने वाली computer
technology जैसे अधिक Powerful, fast, high-tech and
high-memory capacity वाले कंप्यूटर को शामिल किया गया है. इसमे
साधारण Microprocessor की जगह Ultra Large Scale
Integrated Microprocessor का use किया
जाता है. ULSI Microprocessor की एक chip में लगभग एक करोड़ components को install किया जा सकता है. इसके अलावे Parallel processing
method को भी developed किया गया है, Parallel processing method की मदद से एक समय में Multitask
कार्यो को एक साथ करने के लिए दो या दो से अधिक माइक्रोप्रोसेसरों
का उपयोग किया जा सकता है.
Fifth Generation of Computer की सबसे ख़ास feature
Artificial Intelligence यानि कृत्रिम बुद्धिमत्ता है, यानी वैसे कंप्यूटर जो खुद ही Data analysis कर सकता
है. इसी कारण इसका उपयोग Accounting, ENGENEARING, building, SPACE मौसम विभाग प्राकृतिक आपदा तथा दूसरे
प्रकार के शोध-कार्य के लिए किये जाते है
Advantage: -
Ø कंप्यूटर की Speed अति तीव्र हो गयी.
Ø Computers आकार में बहुत ही छोटा हो गया.
Ø कंप्यूटर की storage capacity अत्यधिक बढ़ गयी.
Ø GUI (Graphical User Interface) का उपयोग
होने लगा.
Ø Internet, Email तथा WWW का विकास हुआ.
Ø कंप्यूटर का Use लगभग सभी क्षेत्रों में होने लगा.
5. Characteristics of Computer
कार्य करने की गति(work speed)- कम्प्यूटर के कार्य करने की गति बहुत तेज होती
हैं. जिस कार्य को एक व्यक्ति कई घंटे, महीने तथा वर्षो में
पूरा करता हैं. उसे कुछ ही क्षणों में पूरी करता हैं.कम्प्यूटर की गति को माइक्रो सेकंड, नैनो सेकंड तथा पिको सेकंड्स में
मापा जाता हैं.
A. उच्च
भंडारण क्षमता (High Storage
Capacity)– किसी भी डेटा को किसी रूप में व मात्रा में
स्टोर कर रख सकते हैं. कम्प्यूटर की भंडारण क्षमता काफी अधिक होती
हैं. इसमे डेटा को लम्बे समय तक स्टोर करके रखा जा सकता हैं. और आवश्यकतानुसार
पुनः प्राप्त किया जा सकता हैं.
B. स्वचालित(automatic)– कम्प्यूटर एक स्वचालित मशीन हैं. जो यूजर द्वारा दिए गये
निर्देशों को बिना किसी मानवीय बाधा के सम्पन्न कर सकता हैं.
C. शुद्धता (Accuracy)– यदि कंप्यूटर में इनपुट किये गये इनपुट पूर्ण रूप से सही
हैं तो कंप्यूटर 100 प्रतिशत सही परिणाम देने की क्षमता रखता हैं. इसलिए लोगो की
कंप्यूटर के प्रति यह भावना रहती हैं. कि कंप्यूटर द्वारा की गईं गणना में गलती की
सम्भावना शून्य के बराबर रहती हैं.
D. विविधता(variety)– कंप्यूटर का प्रयोग विभिन्न कार्यो के लिए किया जाता हैं.
इसका प्रयोग किसी भी प्रकार के दस्तावेज को तैयार करने, प्रिंट करने, मनोरंजन
आदि उद्देश्य के लिए किया जाता हैं. कंप्यूटर की इसी विशेषता के कारण इसमे हम एक
से अधिक कार्य कर सकते हैं.
E. ईमानदारी (Integrity)– यह किसी भी कार्य को ईमानदारी के साथ पूर्ण रूप से संपन्न करता हैं. इसमे
कार्यो को दोहराने की क्षमता होती हैं. कंप्यूटर की उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त इसकी कुछ
कमिया भी हैं. जैसे अधिक कीमत, बिजली की खपत, वायरस से सुरक्षा का अभाव, बुद्धिमता का अभाव आदि.
6. Types of Computers
कंप्यूटर के छोटे आकार तथा उसके कार्य क्षमता की वजह से आज कंप्यूटर का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जा रहा हैं. लेकिन विभिन्न प्रकार के कार्यों
को करने के लिए अलग-अलग कंप्यूटर होते हैं. कुछ कंप्यूटर आकार में बड़े होते हैं.
तो कुछ छोटे आकार के होते हैं. इसके अलावा कुछ कंप्यूटर तेज गति से कार्य करते
हैं. तो कुछ धीमी गति से अपना कार्य पूरा करते हैं.
Computer
का
वर्गीकरण मुख्य तीन आधारों पर किया जाता हैं
Ø On the basis of
Application or Data Representation (अनुप्रयोग अथवा आकड़ों के प्रदर्शन के आधार पर)
Ø On the basis of
Purpose (उद्देश्य के
आधार पर)
Ø On the basis of Size
and Capacity or Speed (आकार व क्षमता अथवा गति के आधार पर)
A. अनुप्रयोग
(Application)
के आधार पर Computer के प्रकार: - इस आधार पर कंप्यूटर को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा
सकता हैं.
1. Analog Computer
2. Digital Computer
3. Hybrid Computer
1. Analog Computer: -एक ऐसी मशीन है जो आँकड़ों की एक भौतिक मात्रा (दाब, तापमान, लम्बाई,
ऊँचाई आदि) को दर्शाता है, यह आँकड़े सतत
(लगातार) परिवर्तित होते रहते है. जो कंप्यूटर लगातार जनित संकेतों पर work
करते हैं. उन्हें Analog Computer कहा जाता
हैं. इस प्रकार के कंप्यूटर का use भौतिक मात्रा को नापने के
लिए किया जाता हैं. जैसे की pressure, temperature, speed weight, depth इत्यादि. Analog कंप्यूटर का सबसे ज्यादा प्रयोग
इंजीनियरिंग व विज्ञान के क्षेत्रों में होता हैं. क्यों की मात्राओं के measure
का कार्य इन क्षेत्रों में अधिक होता हैं.
2. Digital Computer: - एक Computer जो
सूचनाओं को अंकीय रूप में प्रोसेस करता है उसे डिजिटल कम्प्यूटर कहा जात है.
Digit का अर्थ ‘अंक’ होता हैं. बिखरे हुए data को अंकीय रूप में एकत्रित कर उनपर प्रक्रिया करने वाले कंप्यूटर को Digital
Computer कहते हैं. Digital Computer information को अंकीय रूप में display करने के लिए Binary
System (0,1) का प्रयोग करते हैं. ये Computer गणीतिय तथा तार्किक कार्य करने में सक्षम हैं. इनके परिणाम अधिक शुद्ध
होते हैं. इन computers का इस्तेमाल office, school,
shop इत्यादि में किया जाता हैं.
3. Hybrid Computer: - Analog और Digital Computers के Combination के कारण ही इन Computers को हाइब्रिड कहा जाता हैं. Hybrid
computers का उपयोग उन जगह होता हैं. जहाँ दोनों प्रकार के data
को process करने की जरूरत होती है.
जैसे किसी अस्पताल में रोगी के तापमान व रक्तचाप को मापना व
रोगी के रोग से सम्बंधित data का processing, ये दोनों प्रकार के कार्य मात्र Hybrid
computers से ही सम्भव हैं. उदाहरण Ultrasound Machine,
Petrol Pump Machine, Speedometer इत्यादि.
B. On the basis of Purpose (उद्देश्य के आधार पर):-
1. General Purpose Computer.
2. Special Purpose Computer.
General purpose computer: -विभिन्न program को store कर सकता है और उसका
उपयोग अनगिनत एप्लीकेशन में किया जा सकता है। एक जनरल
पर्पस कंप्यूटर Main मेमोरी में स्टोर किए गए एप्लिकेशन
प्रोग्राम को बदलकर समान कुशलता के साथ किसी भी प्रकार का कार्य कर सकता है।
Special Purpose Computer: - वह है जिसे केवल एक विशेष कार्य करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। program या instruction set स्थायी रूप से ऐसी मशीन में संग्रहीत किया जाता है। तापमान का परीक्षण
करने के लिए थर्मामीटर, बिजली का प्रबंधन करने के लिए
जेनरेटर Special Purpose Computer के उदाहरण है |
C. On the basis of Size and Capacity
or Speed (आकार व क्षमता अथवा गति के आधार पर):-
1. Micro Computer
2. Mini computer
3. Mainframe Computer
4. Super Computer
Micro Computer: - ये कंप्यूटर नार्मल वर्क के लिए प्रयोग किया जाता है। इस computer में सिर्फ एक ही CPU लगा होता है और ये Computer साइज़ में काफी छोटा होता
है साथ ही ये Computer कास्ट में भी ज्यादा महँगा नही होता
है। ये Computer general purpose कंप्यूटर होता है। इस Computer
पर आप अपना सभी पर्सनल काम कर सकते है।
Mini Computer: - Mini Computer,
mainframe Computer से छोटे होते है और सस्ते भी होते है ये नार्मल Computer
से fast होते है। यह Computer multi वर्क के लिए प्रयोग किये जाते है। मिनी कंप्यूटर किसी भी काम के लिए
प्रयोग किये जा सकते है, चाहे वो पर्सनल काम हो या फिर ऑफिस
का काम हो। ये Computer सभी जगह प्रयोग किया जा सकता है।
Mainframe Computer: - Mainframe
Computer का इस्तेमाल बड़ी बड़ी कंपनी करती है, ये
काफी fast Computer होते है लेकिन super Computer के जितने fast नही होते है। इन mainframe
Computer में स्टोरेज कैपेसिटी भी काफी ज्यादा होती है। यह किसी भी
डाटा को काफी जल्दी प्रोसेस करते हैं।
Super Computer: - सुपर कंप्यूटर बाकी सभी तरह के कंप्यूटर से बहुत fast होते है। ये बहुत से कामों को एक साथ
करने की क्षमता रखते है। ये Computer किसी specific काम के लिए डिजाईन किये जाते है।
इन super Computer को बनाने के लिए बहुत से CPU को parallel रूप से जोड़ा जाता है जिससे सभी CPU एक साथ काम कर सके। ये Computer साइज़ में काफी बड़े होते है और काफी heat produce करते है इसलिए इनको ठंडा रखने के लिए AC युक्त कमरे में install किया जाता है।
7. Input & Output Devices
एक कप्युटर में इनपुट तथा आउट्पुट दोनों प्रकार की डिवाइस
होते है, इनपुट
डिवाइस द्वारा कंप्यूटर को डाटा या निर्देश देने तथा आउट्पुट डिवाइस द्वारा रिजल्ट
प्राप्त करने के लिए किया जाता है। Input Output Devices के द्वारा
हम कंप्यूटर को निर्देश देते है एवं कंप्यूटर द्वारा प्रोसेड जानकारी को देखते एवं
ग्रहण करते है।
Input Devices: - जिन उपकरणों द्वारा निर्देश एवं डाटा हम कंप्यूटर को देते है। उन्हे इनपुट
डिवाइस कहते है। जैसे माउस, ट्रेकबॉल आदि।
Keyboard (कीबोर्ड) – कीबोर्ड एक इनपुट डिवाइस है। इसके द्वारा प्रोग्राम एवं
डाटा को कंप्यूटर में एंटर किया जाता है। यह टाइपराइटर के कीबोर्ड जैसा ही होता
है। इसमें अल्फाबेट्स, नम्बर, स्पेशल कीज, फ़ंक्शन
कीज, मूवमेंट कीज, होती है। जब एक Key दबाई जाती है तब एक इलेक्ट्रानिक सिग्नल उत्पन्न होता है जो
कीबोर्ड एनकोडर नाम के इलेक्ट्रानिक सर्किट द्वारा डिटेक्ट किया जाता है।
Mouse (माउस) – माउस कंप्यूटर की सबसे महत्वपूर्ण पोइंटिंग डिवाइस है। यह भी एक इनपुट डिवाइस
है, इसका
प्रयोग स्केचेस, डायग्राम आदि ड्रा करने में, टेक्स्ट को सलेक्ट करने, इन्सट्रक्शन देने प्टिकल ।
इसमें दो बटन लेफ्ट और राइट तथा तीसरा बटन स्क्रॉल बटन भी ऑप्टिकल माउस में होआदि
कार्य के लिए किया जाता है। माउस दो प्रकार का होता है। (1) मेकेनिकल तथा (2) ऑता
है।
Track Ball (ट्रैक बॉल) – ट्रैक बॉल माउस की ही तरह एक इनपुट डिवाइस है लेकिन इसमें
नीचे का भाग ऊपर की तरफ होता है जैसे मैकेनिकल माउस में एक बॉल नीचे की तरफ होती
है उसी तरह ट्रैक बॉल में एक बॉल ऊपर की तरफ होती है जिसे हम घूमाकर कंट्रोल की
मूवमेंट को मैनेज करते है। और इनपुट प्रदान करते है।
जॉयस्टिक (Joystick) – जॉयस्टिक प्रायः गेम ऍप्लिकेशन में प्रयोग की जाती है। यह कंप्यूटर सिस्टम को
इनपुट प्रदान करती है। इस इनपुट डिवाइस में इनपुट हम अंगूठे से जॉयस्टिक के बटन को
प्रेस करके देते है। इस डिवाइस के नीचे एक गोलाकार बॉल होती है जिस पर यह घूमता
है।
Light Pen (लाइट पेन) – किसी कंप्यूटर सिस्टम की स्क्रीन में इनपुट देने के लिए
लाइट पेन का प्रयोग किया जाता है। यह CRT स्क्रीन को छूता है, जहाँ यह पास होते
समय स्क्रीन पर रास्टर् को डिटेक्ट कर सकता है।
Microphone (माइक्रफोन) – माइक्रोफोन को कंप्यूटर सिस्टम में जैक पोर्ट द्वारा कनेक्ट
करके हम साउंड इनपुट करते है। यह एक इनपुट डिवाइस है।
Bar Code Reader (बार कोड रीडर) – यह डिवाइस बार कोड़ को इलेक्ट्रानिक पल्स में परिवर्तित कर
कंप्यूटर में इनपुट करती है। बार कोड़ एक तरह का कोड़ होता है जो लाइट तथा डार्क
बार के रूप में होता है।
MICR (माइक्रो इंक करेक्टर रीडर) – यह एक इनपुट डिवाइस है इसका प्रयोग मैग्नेटिक करैक्टर को Read करने के लिए होता है। ऐसे करैक्टर बैंक
चेक पर पाए जाते है जिन्हे लेबल MICR के माध्यम से रीड किया
जाता है।
Touch Screen (टच स्क्रीन) – यह एक इनपुट डिवाइस है जिसका प्रयोग स्क्रीन पर उपलब्द विकल्पों को चुनने तथा
सलेक्ट करने के लिए किया जाता है। बैंक ATM आदि में इसका प्रयोग किया जाता है।
स्कैनर (Scanner) – इस डिवाइस का प्रयोग किसी चित्र अथवा शब्दों को डिजिटल रूप मे बदलकर स्क्रीन
पर देख सकते है।
Output Devices: - किसी भी निर्देश एवं डाटा को कंप्यूटर में इनपुट डिवाइस के माध्यम से उपलब्द
कराया जाता है। कंप्यूटर उन निर्देशों को प्रोसेस करता है तथा जिन उपकरणों के
द्वारा कंप्यूटर हमे Result देता है या प्रदर्शित करता है। उन्हे आउट्पुट डिवाइस कहते है। आउट्पुट डिवाइस
के उदाहरण जैसे – स्पीकर, प्रिंटर, प्रोजेक्टर,
प्लाटर, स्पीकर इत्यादि
Hard Copy: यह वो आउटपुट है, जो प्रिन्ट डॉक्यूमेंट के रूप में होता है।
उदाहरण के लिये प्रिंटर द्वारा किसी इमेज या डॉक्युमेंट को पेपर में प्रिंट किया
गया हो। कभी-कभी हम इसे Printout भी कहते है। अर्थात इस
आउटपुट की एक फिजिकल फॉर्म होती है, जिसे हम छू सकते है।
आमतौर पर Printer व Fax Machine के
द्वारा हम ऐसे आउटपुट प्राप्त करते है।
Soft Copy: ये वो आउटपुट है, जिसकी कोई फिजिकल फॉर्म नही होती है। ये एक
Digital Copy है, जिसे हम सिर्फ
कंप्यूटर में सेव कर सकते है। आप इसे डॉक्यूमेंट का इलेक्ट्रोनिक वर्शन भी कह सकते
है, जिसे किसी Software की मदद से
ओपन किया जा सकता है। ऐसे आउटपुट को मॉनिटर या प्रोजेक्टर जैसे Output
Devices से प्राप्त किया जाता है।
Monitor:
- मॉनिटर एक electronic device है, जिसे output
डिवाइस कहते है। monitor बिलकुल टीवी (T.V.)
की तरह दिखता है, कंप्यूटर के result या आउटपुट को हमे मॉनिटर पर graphics के form
में दिखाता है और इसे हम Visual Display Unit (VDU) भी कहते है। मॉनिटर पर जो graphics के form में हमे आउटपुट मिलता है,
वो pixels की मदद से बनते है। pixel वह इकाई (unit) होती है, जो की
monitor पर सबसे छोटी होती है, और उस
एक pixel में एक रंग को दिखाने की शक्ति होती है और उन pixels
की मदद से हमे मॉनिटर पर आउटपुट मिलता है।
मॉनिटर तीन तरह के होते है –
A. CRT Monitor
B. LCD Monitor
C. LED Monitor
CRT Monitor: - इसका पूरा नाम Cathode Ray Tube है यह टीवी की तरह दिखाई
देता है, इसका वजन काफी भारी होता है, इसे एक स्थान दूसरे स्थान तक ले जाना
मुश्किल होता है, पुराने समय में कंप्यूटर में सीआरटी मॉनिटर
का ही उपयोग होता था।
TFT Monitor: - इसका पूरा नाम Thin Film Transistor है. यह आकार में छोटा होता है और लंबा होता है इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक
ले जाने में कोई समस्या नहीं होती यह उपयोग करने में काफी आसान होता है
LCD Monitor: - इसका पूरा नाम Liquid crystal Display है इसे उपयोग करना
बहुत आसान होता है यह दिखने में छोटा और लंबा होता है। यह TFT स्क्रीन की तरह ही
दिखाई देखता है, इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना
आसान होता है। वर्तमान समय में सर्वाधिक USE
होने वाली स्क्रीन है।
LED Monitor: - वर्तमान समय में सर्वाधिक उपयोग में आने वाली
स्क्रीन है। इसका पूरा नाम Light Emitting Diode है। यह उपयोग करने में बहुत आसान होता हैं,
इसे एक से दूसरे स्थान तक आसानी से ले जाया जा सकता है। यह दिखने
में काफी आकर्षक होता है, और इसकी पिक्चर क्वालिटी बहुत
बढ़िया होती है।
Printer: - Printer एक ऐसा Output Device है जो बहुत ही तेजी से आउटपुट प्रदान करता है प्रिंटर की अपनी कोई मेमोरी
नहीं होती यहां कंप्यूटर से कमांड लेता है, तथा आउटपुट
प्रदान करता है।
कंप्यूटर में जब कोई टेक्स्ट डॉक्यूमेंट बनाया जाता है तथा
जब इस डॉक्यूमेंट को प्रिंट करना होता है तो प्रिंटर का उपयोग किया जाता है।
प्रिंटर के माध्यम से इंटरनेट से डाउनलोड फाइल को प्रिंट
किया जा सकता है इसके अतिरिक्त अन्य बहुत सारे कार्य की हार्ड कॉपी के रूप में
हमें आवश्यकता होती है प्राप्त कर सकते हैं।
प्रिंटर के प्रकार – Types of Printer
1. Impact Printer
2. Non Impact Printer
1. Impact printer: - प्रत्येक प्रिंट को हिट के द्वारा प्रिंट करते
हैं। सामान्यता यह प्रिंटर हैमर (Hammer) का प्रयोग करते
है। Impact printer निम्न प्रकार के होते हैं-
A. Character Printer
B. Line Printer
A. Character Printer: - यह एक बार में एक ही कैरेक्टर प्रिंट करता है। यह एक बार में एक लाइन प्रिंट
नहीं करता। Dot Matrix
Printer और Daisy Wheel Printer कैरेक्टर
प्रिंटर होते हैं।
आज यह प्रिंटर कम गति के कारण अधिक उपयोग में नहीं आते।
क्योंकि यह single
character प्रिंट करते है।
Ø Dot Matrix Printer
Ø Daisy Wheel Printer
Dot Matrix Printer एक इंपैक्ट प्रिंटर कहलाता है इसके प्रिंट हैड
में पिनो का एक matrix होता है। इन पिनो के रिबन से टकराने से कागज पर प्रिंटिंग होती है। इसमें
छोटे-छोटे बिंदुओं से मिलकर अक्षरों का निर्माण होता है। इनके प्रिंटिंग हैड में 9,14,18 या 24 पिनो का horizontal group होता है। एक बार में एक कलम की पिन हैड से बाहर निकलकर dots को छापती है जिससे एक अक्षर अनेक चरणों में बनता है इस प्रकार प्रिंटिंग
हैड लाइन की दिशा में आगे खिसकता जाता है।
इसमें प्रिंटिंग हैड को कंप्यूटर के द्वारा नियंत्रित किया
जाता है। इनकी प्रिंटिंग गति 30 से 600 अक्षर प्रति second होती है। यह प्रिंटर दोनों दिशा में
प्रिंटिंग करते हैं।
Daisy Wheel Printer: - Daisy wheel प्रिंटर धीमी गति का प्रिंटर है।
लेकिन इसकी प्रिंटिंग quality अच्छी होती है। इसलिए इसका
प्रयोग पत्र छपने के लिए किया जाता है। इसको Letter Quality Printer भी कहते है।
B. Line Printer: - यह high speed इम्पैक्ट
प्रिंटर है। जो एक बार में एक लाइन प्रिंट करता है। बड़े कंप्यूटर के लिए हाई स्पीड
प्रिंटर की आवश्यकता होती है। क्योंकि यह प्रति सेकंड 500 से
3000 लाइनों को प्रिंट करता है।
a. Drum Printer
b. Chain Printer
Drum Printer: - यह एक letter quality एवं लाइन प्रिंटर है यह एक बार में पूरी लाइन
प्रिंट करता है। इस प्रिंटर में एक ड्रम का उपयोग किया जाता है जो अपनी जगह पर
रोटेट करता है। यह प्रिंटर लाइन के हिसाब से बहुत सारे हैमर का उपयोग करता है यदि
ड्रम प्रिंटर में 80 कॉलम है तो यह 80 हैमर रखता है।
Chain Printer: - यह भी एक Letter quality प्रिंटर है। इस प्रिंटर में एक chain का उपयोग होता है। जो कि कैरेक्टर को प्रिंट करती है। इसमें करैक्टर, mirror image के रूप में होता है।यह चैन दो चकों पर
आधारित होती है। जोकि उसे rotate करते हैं। एक हैमर का उपयोग
एक लाइन में कैरेक्टर को प्रिंट करने के लिए किया जाता है।
2. Non-Impact
Printer: - Non-Impact printer को पेज प्रिंटर भी कहा
जाता है। क्योंकि यह प्रिंटर एक बार में एक पेज प्रिंट करते हैं। इसमें
character और image को प्रिंट करने के लिए ribbon
का उपयोग नहीं किया जाता है। Impact printer की
तुलना में इसकी प्रिंटिंग quality ज्यादा अच्छी होती है।
a. Inkjet Printer
b. Laser Printer
Inkjet Printer: - यह एक non-Impact
printer है। जो कागज पर स्याही का छिड़काव करके Hard copy को प्रिंट करता है। यह छोटे-छोटे dots के साथ चित्र
बनाते हैं। यह printer कम से कम 300 DPI (Dot per
inch) resolution के साथ page को प्रिंट कर
सकता है। कुछ नये inkjet printer 600 DPI या अधिक पर पूर्ण
रंग की hard copy print कर सकते हैं।
Laser Printer:- लेजर प्रिंटर non-impact page
printer हैं। लेजर प्रिंटर का use कंप्यूटर
सिस्टम में 1970 के दशक से हो रहा हैं, पहले ये Mainframe Computer में use किये जाते थे। 1980 के दशक में लेजर प्रिंटर का
मूल्य लगभग 3000 डॉलर था। ये प्रिंटर आजकल अधिक लोकप्रिय हैं,
क्योकि ये अपेक्षाकृत अधिक तेज और high quality में टेक्स्ट और ग्राफिक्स छापने में सक्षम हैं। अधिकांश laser
printer में एक अतिरिक्त माइक्रो प्रोसेसर रेम व रोम का use किया जाता है, यह printer भी
डॉट्स के द्वारा ही कागज पर प्रिंट करता है, परन्तु ये डॉट्स
बहुत ही छोटे व पास-पास होने के कारण बहुत सपष्ट प्रिंट होते है। इस printer
में Cartridge का use किया
जाता है, जिसके अंदर सुखी स्याही को भर दिया जाता हैं। Laser
printer के कार्य करने की विधि मूलरूप से Photo copy मशीन की तरह होती है लेकिन photocopy machine में
तेज रोशनी का use किया जाता है। लेजर printer 300 से लेकर 600 DPI तक या उससे भी अधिक रेजोलुशन की
छपाई करता है। रंगीन लेजर प्रिंटर उच्च क्वालिटी का रंगीन Output देता हैं।
Plotter:
- प्लॉटर एक तरह का प्रिंटर है जो की वेक्टर ग्राफिकस को
छापने के काम में आता है। प्लोटर एक आउटपुट उपकरण है जो की ग्राफ और डिज़ाइन को
छापने का काम करता है। यह सामान्य रूप से बड़े आकार के ग्राफ और मैप जैसे की
इंजीनियरिंग डिज़ाइन, चित्र और बड़े आकार के पोस्टर बनाने के काम आता है। डिजिटल तरीके से चलने
वाले प्लोटर XY राइटर को आउटपुट उपकरण की तरह इस्तेमाल करते
हैं जिससे की वह इनके माप आसनी से ले सकें।
Speaker:
- Speaker एक कंप्यूटर हार्डवेयर output device है, जिसका उपयोग कंप्यूटर से connect करके ध्वनि को सुनने के लिए किया जाता है।
Projector:
- प्रोजेक्टर कंप्यूटर की एक आउटपुट डिवाइस है। जिसके द्वारा
किसी भी प्रकार के इमेज या विडियो को सफ़ेद परदे या दीवार पर दिखाया जाता है। इमेज
या विडियो को विस्तार से समझाने के लिए प्रोजेक्टर का इस्तेमाल किया जाता है।
प्रोजेक्टर के द्वारा स्क्रीन पर दिखाई देने वाली इमेज या विडियो को यूजर अपने
अनुसार व्यवस्थित कर सकता है।
प्रोजेक्टर का इस्तेमाल अधिकतर स्कूल, सिनेमा हॉल, बिज़नस मीटिंग आदि में किया जाता है। कंप्यूटर स्क्रीन में दिख रही इमेज या विडियो को प्रोजेक्टर Reflected करके दीवार या सफ़ेद पर्दे पर बड़े आकार में दिखाते हैं।
8. Components of Computer
कम्प्यूटर एक सिस्टम है। सिस्टम , विभिन्न Component का
एक समूह होता है। जो आपस में एक दुसरे से मिलकर किसी विशेष कार्य को पूरा करते है।
कम्प्यूटर सिस्टम के निम्नलिखित Component
है।
1.
2. Output Unit
3. Storage Unit/Memory Unit
4. CPU (Central Processing Unit)
5. CU (Control Unit)
6. ALU (Arithmetic Logic Unit)
1. Input Unit: - कंप्यूटर की वे यूनिट जिनके द्वारा डाटा एवं कमांड को कंप्यूटर में इनपुट किया
जाता है। उसे Input unit कहते हैं। इनपुट डिवाइस कई प्रकार की होती हैं। जैसे Keyboard,
Mouse, Magnetic tape आदि।
2. Output Unit: - कंप्यूटर की वे यूनिट जिनके द्वारा इनपुट किए गए डाटा एवं कमांड को प्रोसेस के
बाद जो परिणाम प्राप्त होता है, या डिस्प्ले होता है। उसे Output unit कहते
है। आउटपुट डिवाइस कई प्रकार की होती है, जैसे Printer,
Monitor, Speaker आदि।
3. Memory Unit: - यह कंप्यूटर की स्टोरेज यूनिट है। यह कंप्यूटर का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
इसमें हम डाटा प्रोग्राम आदि को स्टोर करके रख सकते हैं। इसमें डाटा को बायनरी
फॉर्मेट (0,1)
में स्टोर किया जाता है। इसको नापने की साइज के आधार पर यूनिट है। जैसे Byte,
Kilobyte, Megabyte, Gigabyte एवं Terabyte इसमें
सबसे छोटी यूनिट byte एवं सबसे बड़ी यूनिट terabyte होती है।
4. Central Processing Unit (CPU): - CPU कम्प्यूटर का महत्वपूर्ण भाग है। जिसे प्रोसेसर, माइक्रोप्रोसेसर
और केवल सीपीयू भी कहते है। सीपीयू कम्प्यूटर से जुड़े सभी हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, यूजर्स तथा इनपुट डिवाइसों से प्राप्त
डेटा एवं निर्देशों को संभालता है, और उसे प्रोसेस करके
परिणाम देता है। ऑपरेटिंग सिस्टम एवं अन्य प्रोग्रामों का संचालन भी करता है। यह
कम्प्यूटर का दिमाग है।
5. Arithmetic Logic Unit (ALU): - ALU पूरा नाम Arithmetic Logic Unit है। यह
कंप्यूटर के प्रमुख unit होती है। इसके द्वारा कंप्यूटर में
सभी गणितीय एवं लॉजिकल कार्य
किए जाते हैं। यह प्रोसेसर के अंदर होती है।
6. Control Unit (CU): - CU पूरा नाम Control Unit है। इसके द्वारा पूरे
कंप्यूटर सिस्टम को control करने का कार्य किया जाता है। यह unit
सीपीयू की महत्वपूर्ण unit होती है।
9. Computer Memory
Random
Access Memory: - RAM का पूरा नाम Random Access Memory है। इसको कंप्यूटर की
प्रमुख मेमोरी कहा जाता है। यह साइज़ में छोटी होती है। जैसे 512 MB, 1 GB इसको Volatile Memory भी कहते है। परंतु यह
अस्थाई मेमोरी है। क्योंकि कंप्यूटर का स्विच ऑफ होते ही मेमोरी में लिखी
इंफॉर्मेशन मिट जाती हैं। जिसको पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता । RAM से होकर डाटा Secondary Storage Device or
Processor के पास जाता है। यह निम्न प्रकार की होती है। जैसे SRAM, SDRAM, DRAM and NVRAM.
SRAM
(Static Random Access Memory): - इसका पूरा नाम Static Random Access Memory है। यह Flip Flop से मिलकर बनी होती है। इसलिए यह कम
refresh होती है। इसमें हम डाटा
को अधिक समय तक रख सकते हैं। यह एक महंगी मेमोरी होती है। इसकी Data accessing speed अन्य RAM की अपेक्षा अधिक होती है।
DRAM
(Dynamic Random-Access Memory): - इसका पूरा नाम Dynamic Random-Access Memory है। यह मेमोरी
जल्दी-जल्दी refresh होती है। Refresh का मतलब Electronic charge or Discharge से होता है। यह एक
सेकंड में हजारों बार refresh होती है। अतः इसकी स्पीड slow होती है। यह अन्य RAM की अपेक्षा सस्ती होती है।
SDRAM
(Synchronous Dynamic Random-Access Memory): - इसका पूरा नाम Synchronous Dynamic Random-Access Memory है। इसकी speed DRAM की अपेक्षा अधिक होती है। यह RAM, CPU की घड़ी के अनुसार कार्य करती है।
NVRAM (Non-Volatile
Random-Access Memory): - इसका पूरा नाम Non-Volatile Random-Access Memory है। इस RAM का प्रयोग नेटवर्क डिवाइस में
हार्डडिस्क के रूप में किया जाता है। यह एक महंगी मेमोरी होती है।
Read
Only Memory (ROM): - ROM का पूरा नाम Read Only Memory है। यह कंप्यूटर की Primary Memory होती है। यह स्थाई मेमोरी होती है।
इसमें कंप्यूटर को स्टार्ट करने वाले प्राथमिक प्रोग्राम एवं setting होती है। यह कंप्यूटर के मदरबोर्ड पर स्थाई
रूप से लगी रहती है। यह एक महंगी मेमोरी होती है। लेकिन बाजार में अलग से उपलब्ध नहीं होती मदरबोर्ड के साथ आती है। ROM तीन प्रकार की होती है। PROM, EPROM, EEPROM.
PROM
(Programmable Read Only Memory): - इसका पूरा नाम Programmable Read only Memory है। इस चिप में एक बार
प्रोग्राम स्टोर किया जा सकता था। यदि प्रोग्राम में त्रुटि (Error) होने पर उसमे कोई सुधार नहीं किया
जा सकता था।
EPROM
(Erasable Programmable Read Only Memory): - इसका पूरा नाम Erasable Programmable Read Only Memory है। इस चिप ने PROM की समस्या को दूर किया था। इस चिप
में स्टोर प्रोग्राम में सुधार किया जा सकता था। चिप में सुधार करने के लिए चिप को
बोर्ड से निकाल कर पराबैंगनी किरण (Ultraviolet ray) के सामने रखा जाता था। जिससे चिप
में स्टोर प्रोग्राम और डाटा को डिलिट किया जाता था। इसके बाद पुनः प्रोग्राम को
स्टोर किया जाता था। जो एक कठिन एवं महंगी प्रक्रिया थी।
EEPROM
(Electronic Erasable Programmable Read Only Memory): - इसका पूरा नाम Electronic Erasable Programmable Read
Only Memory है। इस चिप ने EPROM की समस्या को दूर किया था। इस चिप में स्टोर
प्रोग्राम एवं डाटा में सुधार करने के लिए विधुत का प्रयोग किया गया था। इसके लिये
चिप को मदरबोर्ड से निकलने की आवश्यकता नहीं होती है। यह एक सरल एवं सस्ती
प्रक्रिया है। आजकल के मदरबोर्ड में इसी ROM का प्रयोग किया जा रहा है।
Secondary Memory:- सेकेंडरी मेमोरी कंप्यूटर की स्थाई
मेमोरी होती है। इसकी स्पीड
प्राइमरी मेमोरी से कम होती है। यह आकार में बड़ी एवं सस्ती मेमोरी होती हैं। कंप्यूटर में
सेकेंडरी मेमोरी के तौर पर Hard disk, CD आदि का प्रयोग किया जाता है। सेकेंडरी स्टोरेज डिवाइस को Auxiliary storage device भी कहा जाता है। यह
कंप्यूटर का भाग नहीं होती इसको कंप्यूटर में अलग से जोड़ा जाता है। इसमें जो डाटा स्टोर किया जाता
है, वह स्थाई होता है।
अर्थात कंप्यूटर बंद होने पर इसमें स्टोर डाटा डिलीट नहीं होता है। आवश्यकता के अनुसार भविष्य में इसमें save फाइल या फोल्डर को खोल कर देख सकते
हैं, या सुधार भी कर सकते
हैं। एवं इसको यूजर के द्वारा डिलीट
भी किया जा सकता है। इसकी storage क्षमता अधिक होती है। एवं डाटा को access करने की क्षमता Primary Memory से धीमी होती है।
Types of secondary storage devices
1. Magnetic tape
2. Magnetic Disk
3. Hard Disk Drive (HDD)
4. Solid State Drive (SDD)
5. Floppy Disk
6. Optical Disk
Magnetic
Tape:- Magnetic tape, ऑडियो टेप रिकॉर्डर के
समान होती है। Magnetic tape ड्राइवर spools से निर्मित होती है। इन
दो spools के बीच में 9 हेड होते हैं। जो सूचनाओं को read या write करते हैं। प्रत्येक हेड
स्वतंत्र पूर्वक कार्य करता है। एवं सूचनाओं को ट्रैक के अनुसार store करता है। यह टेप
प्लास्टिक के बने होते हैं। जिस पर ferromagnetic material की coding होती है। Magnetic tape की चौड़ाई 12.5 mm या 25 mm तक होती है। तथा लंबाई
500 मीटर से 1200 मीटर तक होती है। इस टेप पर 9 समान्तर ट्रक होते हैं। 9 हेड वाले
tape में 8 ट्रैक का उपयोग सूचनाओं को स्टोर करने के लिए किया जाता। तथा 9 वीं
ट्रैक का उपयोग parity bit को रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता
है।
Magnetic
Disk: - Magnetic Disk एक circular plate या प्लास्टिक की होती
है। जोकि Magnetic material द्वारा coded होती है। यह disk नंबर ऑफ ट्रैक एवं सेक्टर
में विभाजित होती है। यह Magnetic के लिए “1” तथा Non-Magnetic के लिए “0” का उपयोग करती है। Magnetic डिस्क को उसके physical structure के आधार पर दो भागों
में बांटा गया है।
Hard
Disk: - HDD का पूरा नाम Hard Disk
Drive है। हार्ड डिक्स एलुमिनियम की सर्कुलर प्लेट होती है। जो कि आयरन ऑक्साइड से coded होती है एल्युमिनियम
प्लेट के कारण इसे हार्ड डिक्स कहा जाता है। प्रत्येक हार्ड डिस्क एक या एक से
अधिक एलुमिनियम प्लेट content करता है। यह प्लेट एलुमिनियम बॉक्स
से ढंकी रहती है। ताकि धूल से बची रहे, यह डिक्स सेंटर पर असेम्बिल होती
है। और मोटर की सहायता से रोटेट कर सकती है।
Solid
State Drive: - SDD का पूरा नाम Solid State
Drive है। SSD में मेमोरी चिप का प्रयोग होता है इसमें कोई भी मूविंग प्लेट्स नहीं होती
इसीलिए इसमें आवाज नहीं होती और डाटा सेव करते समय या डाटा रीड करते समय बहुत ही
तेजी से कार्य होता है।
Floppy
Disk: - Floppy Disk को Components of
Computer System में diskette या केवल floppy भी कहा जाता है। इसका
प्रयोग माइक्रो कंप्यूटर में होता है। इसका प्रयोग CD की तरह किया जाता था। इसको
एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए एक drive की आवश्यकता होती है।
जिसे Floppy Drive कहा जाता है।
(a) Mini
Floppy – यह आकार में 5 1⁄4 इंच की होती है। इनकी संग्रहण क्षमता
1.2 MB होती है। इनकी Drive भी आकार में इसी प्रकार की होती है।
(b) Micro Floppy – यह आकार में 3 1⁄4 इंच की होती है। इनकी संग्रहण क्षमता 1.44 MB होती है। इनका आवरण
अधिक मजबूत होता है।
Optical
Disk:- किसी भी सूचनाओं को read-write करने के लिए optical disk एक लेजर बीम का उपयोग
करती है। Optical disk प्लास्टिक की एक circular plate होती है। जो कि
एल्युमीनियम की एक पतली परत से ढंकी होती है। Optical Disk non-trans met
material द्वारा covered होती है। एवं नंबर ऑफ ट्रैक्स बंटी होती है। डाटा इन ट्रैक्स में बर्न या नॉन-बर्न फॉर्म में होता है। किसी ट्रैक के portion बर्न करने के लिए लेजर
बीम का उपयोग करते हैं, परंतु किसी डाटा को read करने के लिए एक कमजोर लेजर का
उपयोग होता है। जब भी कोई लेजर बीम डिस्क के ट्रैक पर हिट करती है। तब अनबर्न portion लाइट reflect करता है।
10. Hardware & Software
कंप्यूटर में मौजूद भौतिक तत्त्व
जिन्हें हम देख और छू सकते हैं, वे सभी उपकरण हार्डवेयर कहलाते हैं। हार्डवेयर के अंतर्गत कीबोर्ड, माउस, स्कैनर, जॉयस्टिक आदि उपकरण आते हैं। हार्डवेयर एक सामूहिक शब्द है जिसका उपयोग कंप्यूटर के विभिन अंगो का वर्णन करने के
लिए किया जाता है। कंप्यूटर में हार्डवेयर
का उपयोग किसी भी निर्देश को निष्पादित करने के लिए सॉफ्टवेयर के माध्यम से
निर्देशित किया जाता है। हार्डवेयर के मिलने से ही कंप्यूटर अपना पूर्ण रूप धारण
करता है। और इसके बिना कंप्यूटर का कोई अस्तितव नहीं है।
कंप्यूटर हार्डवेयर दो प्रकार के
होते है।
१. इंटरनल हार्डवेयर(Internal
Hardware)
२. एक्सटर्नल हार्डवेयर(External Hardware)
1.
Internal Hardware: - इंटरनल हार्डवेयर कंप्यूटर के
आतंरिक घटक घटक होते है जो दिखाई नहीं देते, क्यौंकि यह कंप्यूटर के अंदर मौजूद रहकर कार्ये करते
है। इंटरनल हार्डवेयर को देखने के लिए हमें CPU को खोलना पड़ता है जिसके बाद यह हमें दिखाई देते है।
1. Motherboard
2. RAM (Random Access Memory)
3. ROM (Read Only Memory)
4. Power supply Unit
5.
Hard Disk Drive
etc.
2. External Hardware: - एक्सटर्नल हार्डवेयर कंप्यूटर के बाहरी घटक होते है, जिन्हें हम देख और छू सकते है। इन्हे पेरिफेरल
कंपोनेंट्स भी कहा जाता है। इन हार्डवेयर में इनपुट और आउटपुट उपकरण भी शामिल होते है।
v
Monitor
v
Mouse
v
Keyboard
v
Printer
v
Speaker
v
UPS
(Uninterruptable Power Supply)
Software: - सॉफ्टवेयर एक निर्देशों का समूह होता है, जो कम्प्यूटर के विशिष्ट कार्य को पूरा करने के लिए आज्ञा या निर्देश देता है। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर को हम देख या छू नहीं सकते, यह कंप्यूटर के अंदर कार्य करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम, माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस , टैली, आदि कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के उदहरण है।
कंप्यूटर सोफ्टवेयर दो प्रकार के होते है।
1.
सिस्टम सॉफ्टवेयर
2.
एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर
11. Data & Information
Data: - किसी चीज के बारे में तथ्य और जानकारी
को ‘डाटा ‘कहा जाता है। इस जानकारी में संख्या, शब्द, तस्वीर, चिन्ह, राय आदि शामिल होता है। यह तथ्य
अर्थहीन और सामान्य इंसान की
समझ से परे होते है। डाटा को विभिन्न स्रोतों से इकट्ठा किया जाता है। डाटा को बाद में विभिन्न
माध्यमों से Process करके नया डाटा
(अर्थपूर्ण डाटा) बनाया जाता है।
चुकि कम्प्युटर एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन है, इसलिए कम्प्युटर द्वारा डाटा प्रोसेस करने की प्रक्रिया को EDP यानि Electronic Data Processing कहा जाता है।
Computer के लिए डाटा Numbers होते है जो Bytes का समूह होता है। जिसे Binary Digits (0 और 1) में Represent किया जाता है। यह डाटा प्रोसेसिंग़ के लिए CPU में चला जाता है, जहाँ इसके ऊपर Logical Operations करके New Data (Output) बनाया जाता है।
Information: - सूचना को अंग्रेजी में Information कहा जाता हैं। सूचना किसी चीज के बारे में अर्थपूर्ण जानकारी
होती है। जिसे सामान्य इंसान समझ सकता है। जैसे किसी कक्षा में विद्यार्थियों की औसत उम्र एक सूचना है जो उपयोगी है।
Computer में जब किसी कार्य को करने के लिए
निर्देश दिय जाते है तो इस डाटा को प्रोसेस करके अर्थपूर्ण परिणाम दिया जाता है, जिसे सूचना कहा जाता है।
12. Data Conversion / Number System
Number system का प्रयोग सूचना को प्रदर्शित करने
के लिए किया जाता है, जब भी हम कोई letters या word कंप्यूटर में लिखते है तो वह उसे number में बदल देता है। क्योंकि कंप्यूटर केवल numbers को समझता है। डिजिटल कंप्यूटर, सभी प्रकार का डेटा तथा सूचना
बाइनरी संख्या में प्रदर्शित करता है। जैसे: - ऑडियो, विडियो, ग्राफ़िक्स तथा संख्या आदि।
नंबर सिस्टम 4 प्रकार के होते है।
1. Binary
2. Decimals
3. Octal
4. Hexadecimals
Decimal number system (डेसीमल नंबर सिस्टम): - डेसीमल नंबर सिस्टम का प्रयोग हम अपनी दैनिक जीवन में करते है। जिसमें
किसी भी संख्या को प्रदर्शित करने के लिए 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, तथा 9 अंक प्रयोग किये जाते है। इस number system का आधार (base or radix) 10 है। radix किसी नंबर सिस्टम में प्रयोग किये
जाने वाले अंकों की संख्या होती है। decimal number system में लिखी गयी प्रत्येक संख्या के प्रत्येक अंक का अपना एक स्था स्थानीय मान (weight) होता है। इसे गुणक (multiplying factor) भी कहते है। गुणक हजार, सैकड़ा, दहाई तथा इकाई इत्यादि होते है।
2. Binary Number System:- Binary Number System बस 2 नंबर को लेके बना है। यही कारण है की इसे binary नंबर कहा जाता है। इस नंबर सिस्टम का base 2 है। इसमें बस 2 digits का इस्तेमाल हुआ है 1 और 0, इसे 2 Base Number System भी कहा जाता है। Binary Number System का इस्तेमाल machine language में किया जाता है, इसीलिए machine language को binary language भी कहा जाता है। इनमे numbers को कुछ इस तरह लिखा जाता है।
(10101)2.
(11)2
(10001)2
3. Octal Number System:- Octal Number System, 8 नंबर को लेके बना है और वो number हैं “0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7” . इसे 8 base Number System भी कहा जाता है। यही
कारण है की इसे Octal नंबर कहा जाता है। OCTAL का मतलब 8 होता है।
4. Hexadecimal Number system:- Hexa Decimal Number System, यह नंबर system 16 नंबर को लेके बना है और वो numbers हैं “0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, A, B, C, D,
E, F” . इसे 16 base
Number System भी कहा जाता है। यही कारण है की इसे Hexa Decimal नंबर कहा जाता है। Hexa मतलब 6 और Decimal का मतलब 10 होता है।
13. E. Governance
ई-गवर्नेंस का अर्थ है, किसी देश के नागरिकों को सरकारी सूचना एवं सेवाएँ प्रदान करने के लिये संचार
एवं सूचना प्रौद्योगिकी का समन्वित प्रयोग करना। ई-गवर्नेंस में "ई" का अर्थ 'इलेक्ट्रॉनिक' है।
सार्वजनिक
कार्रवाई के तीन क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग।
v
सार्वजनिक
अधिकारियों और नागरिक समाज के बीच संबंध।
v
लोकतांत्रिक
प्रक्रिया के सभी चरणों में सार्वजनिक प्राधिकरणों का कामकाज (इलेक्ट्रॉनिक
लोकतंत्र)
v
सार्वजनिक
सेवाओं (इलेक्ट्रॉनिक सार्वजनिक सेवाओं) का प्रावधान।
ई-गवर्नेंस
के उदय के कारण:
v
शासन का जटिल
होना
v
सरकार से
नागरिकों की अपेक्षाओं में वृद्धि
ई-गवर्नेंस
की विभिन्न धारणाएँ:
प्रशासन:
राज्य को आधुनिक बनाने के लिये आईसीटी का उपयोग; प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) के
लिये डेटा रिपॉज़िटरी का निर्माण और रिकॉर्ड्स (भूमि, स्वास्थ्य आदि) का कंप्यूटरीकरण।
ई-सेवाएँ: इसका
उद्देश्य राज्य और नागरिकों के मध्य संबंध को मज़बूत करना है।
v
ऑनलाइन
सेवाओं का प्रावधान।
v
ई-प्रशासन और
ई-सेवाओं का एक साथ समायोजन करना, जिसे बड़े पैमाने पर ई-सरकार कहा जाता है।
ई-गवर्नेंस: समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने
के लिये सरकार की क्षमता में सुधार हेतु सूचना एवं प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
v इसमें नागरिकों के लिये नीति और कार्यक्रम से संबंधित जानकारी का प्रकाशन
शामिल है।
v यह ऑनलाइन सेवाओं के अतिरिक्त सरकार की योजनाओं की सफलता के लिये आईटी का
उपयोग करता है और सरकार के विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है
ई-लोकतंत्र: राज्य
के शासन में समाज के सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु आईटी का उपयोग।
v इसके अंतर्गत
पारदर्शिता, जवाबदेहिता और लोगों की भागीदारी पर जोर
दिया जा रहा है।
v इसमें नीतियों
का ऑनलाइन खुलासा, ऑनलाइन शिकायत निवारण, ई-जनमत संग्रह आदि शामिल हैं।
उत्पत्ति:
v भारत में
ई-गवर्नेंस की उत्पत्ति 1970 के दशक के दौरान चुनाव, जनगणना,
कर प्रशासन आदि से संबंधित डेटा गहन कार्यों के प्रबंधन के लिये
आईसीटी के अनुप्रयोगों पर ध्यान देने के साथ हुई।
प्रारंभिक
कदम
v 1970 में
इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग की स्थापना भारत में ई-गवर्नेंस की दिशा में पहला बड़ा कदम
था क्योंकि इसमें ’सूचना’ और ‘संचार’ पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
v 1977 में
स्थापित राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) ने देश के सभी ज़िला कार्यालयों
को कंप्यूटरीकृत करने के लिये “जिला सूचना प्रणाली कार्यक्रम” शुरू किया
v ई-गवर्नेंस को
बढ़ावा देने की दिशा में 1987 में लॉन्च NICNET (राष्ट्रीय उपग्रह-आधारित कंप्यूटर नेटवर्क) एक क्रांतिकारी
कदम था।
उद्देश्य:-
v नागरिकों को
बेहतर सेवा प्रदान करना।
v पारदर्शिता और
जवाबदेहिता का पालन।
v सूचनाओं के
माध्यम से लोगों को सशक्त बनाना।
v शासन दक्षता
में सुधार।
v व्यापार और
उद्योग के साथ इंटरफेस में सुधार।
ई-गवर्नेंस
के स्तंभ:-
v लोग
v प्रक्रिया
v प्रौद्योगिकी
v संसाधन
ई-गवर्नेंस
में सहभागिता के प्रकार
v G2G (Government to Government) यानी सरकार से सरकार
v G2C (Government to Consumer) यानी सरकार से नागरिक
v G2B ((Government to Businessman) यानी सरकार से व्यापार
v G2E (Government to Employee) यानी सरकार से
कर्मचारी
v ई गवर्नेंस
हेतु भारत में नवाचार
डिजिटल
इंडिया पहल:-
v इसे
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Meity) द्वारा लॉन्च किया गया है।
v यह भारत को
डिजिटल रूप से सशक्त समाज व ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित करने
के उद्देश्य से शुरू किया गया।
डिजिटल
इंडिया के केंद्र में तीन मुख्य क्षेत्र हैं:-
(i) प्रत्येक नागरिक के लिये सुविधा के रूप में बुनियादी ढाँचा
(ii) गवर्नेंस व मांग आधारित सेवाएँ
(iii) नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण
ई-गवर्नेंस
के लाभ:-
v ई-गवर्नेंस से
प्रशासनिक कार्य एवं सेवाओं की दक्षता एवं गुणवत्ता में सुधार होता है।
v ई-गवर्नेंस के
माध्यम से सरकार को सारे आँकड़े आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
v सरकारें
विभिन्न योजनाएँ और नीतियाँ बनाने के दौरान इन आँकड़ों का विश्लेषण कर बेहतर
निर्णय ले सकती हैं।
v ई-गवर्नेंस के
परिणाम स्वरुप एक कॉमन डेटा तैयार हो जाता है जिसका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के
लिये किया जा सकता है।
v इससे जनता और
सरकार के बीच स्वस्थ एवं पारदर्शी संवाद को मज़बूत बनाया जा सकता है।
v सुशासन के
लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम सरकार की प्रक्रियाओं को सरल बनाना है ताकि पूरी प्रणाली
को पारदर्शी बनाकर तीव्र किया जा सके और यह ई-गवर्नेंस के माध्यम से ही संभव है।
ई-गवर्नेंस से व्यवसाय और
नए अवसरों का सृजन हुआ है।
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